लग गया तो तीर .........

‘लग गया तो तीर, नहीं तो तुक्का’ यह कहावत हालाँकि बहुत पुरानी है, फिर भी सदा ताज़ी, नई तथा प्रासंगिक बनी रहती है। वैसे तो घर-बाहर, दिन-रात सभी लोग तीर-तुक्का मारते रहते हैं, किंतु  मुझे यह प्रचलित कहावत तब बहुत याद आती है, जब मैं समाचारपत्र में छपे ‘भविष्यफल’ को पढ़ता हूँ। हर समाचारपत्र में हर ज्योतिषी अपने तरीके से, अपनी समझ के आधार पर भविष्यफल लिखता है। कोई सूर्य राशि को अपनाता है तो कोई चंद्र राशि को, कोई नाम को आधार बनाता है, तो कोई जन्म तिथि को। मजेदार बात यह है कि अपना भविष्य जानने को मनुष्य जितना आतुर पहले था, उससे कहीं ज्यादा आज के वैज्ञानिक युग में है। यह देखकर सहसा विश्वास ही नहीं होता कि मनुष्य एक ओर तो स्वयं को बौद्धिक, प्रगतिशील, आधुनिक सिद्ध करने के लिए ज्योतिष के महत्त्व को नकारता है, पूजा, पाठ, दान, पुण्य, यज्ञ आदि को अंधविश्वास, दकियानूसी कहता है तथा दूसरी ओर, सुबह सबसे पहले समाचारपत्र  में छपे अपने दैनिक भविष्यफल को पढ़ने या टी॰ वी॰ पर प्रसारित हो रहे अपने राशिफल को सुनने के लिए झपटता है।


इस वर्ष भी नव वर्ष बहुत धूमधाम से आया। मैंने पाया कि पिछले कुछ वर्षों से समाचारपत्रों ने, विशेष रूप से हिंदी के, वर्ष समाप्त होने पर नए वर्ष का भविष्य पूरे विस्तार के साथ देना शुरू किया, जिसमें लगातार वर्ष-प्रति-वर्ष वृद्धि ही होती जा रही है। इस बार तो ऐसा भी हुआ कि एक ही ज्योतिषी ने एक से अधिक समाचारपत्रों के लिए भविष्यफल लिखा। आम आदमी के लिए वह कितना लाभदायक होगा, यह तो वही जाने, किंतु इतना तो कहा ही जा सकता है कि उस ज्योतिषी के लिए तो यह प्रबल धन-योग अवश्य बन गया।


ज्योतिष की सत्ता, महत्ता या गुणवत्ता पर मुझे कभी कोई अविश्वास या संदेह नहीं हुआ। ज्योतिष सचमुच दिव्य ज्ञान है, वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित है, मगर ज्योतिष के आधार पर भविष्य बताने वाले अधिसंख्य ज्योतिषी प्राय: लोगों की आस्था और विश्वास का भरपूर लाभ उठाते हैं तथा उन्हें मूर्ख बनाने में सफल होते हैं। मुझे याद आता है एक प्राचीन किस्सा, जिसमें एक राजा ने एक ज्योतिषी से पूछा, “बताओ! महारानी के पुत्र होगा या पुत्री? यदि तुमने सही बताया तो मुँह माँगा ईनाम दिया जाएगा और यदि गलत बताया तो फाँसी की सज़ा।” यह सुनकर ज्योतिषी घबरा गया। उसने दो दिन का समय माँगा। उसकी चिंता देखकर उसके पुत्र ने कारण पूछा। कारण जानकार एक योजना बनाई। योजनानुसार पिता ने राजा से कहा कि रानी के पुत्र होगा। दूसरे दिन ज्योतिषी का पुत्र ज्योतिषी का भेष बनाकर राजा के पास गया। राजा ने उससे भी वही प्रश्न किया। ज्योतिषी का पुत्र बोला कि रानी के पुत्री होगी। ज्योतिषी तथा उसके पुत्र ने तय किया था कि यदि रानी के पुत्र हुआ तो ज्योतिषी पुरस्कार के रूप में अपने पुत्र (जिसकी बात झूठी हो जाएगी) की सज़ा माफ करवा लेगा, यदि पुत्री हुई तो ज्योतिषी का पुत्र अपने पिता की सज़ा माफ करवा लेगा।


यह किस्सा मुझे तब याद आया, जब मैंने नए वर्ष का अपना भविष्यफल दो तीन समाचारपत्रों में पढ़ा। सबमें अलग-अलग बात लिखी होने से तो मुझे कोई हैरानी न होती क्योंकि सबके पास अपना-अपना ज्ञान है, अपना अलग आधार है, अपनी दृष्टि और अपनी विश्लेषण-विवेचन क्षमता है, मगर एक ज्योतिषी द्वारा लिखा अपना भविष्यफल पढ़कर तो मुझे बहुत हँसी आई। उन महाशय ने ‘स्वास्थ्य ठीक रहेगा तथा स्वास्थ्य का ध्यान रखें, लाभ होगा तथा हानि की आशंका है, काम बनेंगे तथा बनते कामों में रुकावट आएगी’ जैसी विरोधी बातें एक ही महीने में एक ही साथ लिख दीं। अब दोनों में से एक तो ठीक होगी ही। मैंने अपने एक ज्योतिषी मित्र से इस गोरखधंधे का रहस्य पूछा। उन्होंने मुसकराते हुए इसकी व्याख्या कुछ इस प्रकार की, “दोनों ही बातें सही हैं। आप ठीक से समझिए। स्वास्थ्य ठीक रहेगा, यदि आप स्वास्थ्य का ध्यान रखेंगे। लाभ होगा, यदि आप ठीक से कार्य करेंगे, अन्यथा हानि हो सकती है। इसी प्रकार कुछ कम बनेंगे तथा कुछ बनते हुए कामों में बाधा भी आएगी।” मैंने पूछा, “ भई इसमें नया क्या है? यह तो होता ही है, यदि हम अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखें तो स्वास्थ्य ठीक रहेगा, यदि हम सही काम करेंगे तो लाभ होगा आदि।”


मित्र पुन: मुसकराए जैसे बुद्ध मुसकराए। बोले, “ज्योतिषी यही तो समझाने की कोशिश कर रहा है। आप तो साहित्यकार हैं, अभिधा में नहीं व्यंजना में समझिए। स्वास्थ्य का ध्यान रखिए, यदि फिर भी खराब हो जाए, तो घबराइए नहीं, क्योंकि ज्योतिषी ने आपको मानसिक रूप से तो पहले से ही तैयार कर ही दिया था। लाभ हो जाए तो अच्छा है, किंतु ना हो तो भी हिम्मत बाँधे रखिए, क्योंकि यही तो लिखा है कि लाभ होगा तथा हानि की आशंका है। हानि हो गई है, अत: आगे लाभ होगा, इस आशा से कर्म करते रहिए। किसी बनते हुए काम में बाधा आ गई है, तो भी कोई चिंता की बात नहीं है, ‘काम बनेंगे’ यह भी तो लिखा है। अत: धैर्य रखिए।”


मैं उनकी यह व्याख्या सुनकर मन-ही-मन मुसकराया। वाह! ‘चित्त भी मेरी, पट भी मेरी, अंटा मेरे बाप का।’ कुछ तो होगा ही, अच्छा या बुरा। इसीलिए मुझे ज्योतिषी बिलकुल ऐलोपैथी के डॉक्टर जैसे लगते हैं। मरीज़ आया तो समझा, मुर्गा फँसा। सबसे पहले तो सारे टेस्ट किसी खास लैबोरेटरी से। टेस्ट सब ठीक आएँगे क्योंकि ज्यादातर ऐसा ही होता है, लिहाजा बीमारी कुछ समझ आई नहीं। एक साथ चार-पाँच दवाइयाँ दे दीं। ठीक हो गया, तो बहुत बढ़िया, नहीं तो दूसरी दवाइयाँ बदल दीं, तीसरी बदल दीं, फिर भी ठीक न हुआ तो बड़े अस्पताल मे रेफर कर दिया। यही सिलसिला चलता रहता है ज्योतिषी के पास। जैसे हर बीमारी देर-सवेर अपने आप ठीक हो जाती है बिना दवाई के भी, उसी प्रकार बिगड़े काम बन जाते हैं बिना सहायता के भी, और ज्योतिषी मुसकराता रहता है – लग गया तो तीर.....


 


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डॉ॰ रवि शर्मा ‘मधुप’


एसोसिएट प्रोफेसर एवं अध्यक्ष,


कॉलेज ऑफ कॉमर्स, दिल्ली 7 


हिंदी विभाग, श्री राम