जैसे ही रिशा ने सुबह -सवेरे अपनी बालकनी का रूख किया वह एक दिलकश मंजर देखकर हैरान रह गई -उसके पड़ोस का मासूम नो निहाल पापा की गोद में अपने पिले स्कूल के लिए निकला था ।पापा ने गाड़ी की आगे वाली सीट पर उसे बिठा दिया, गाड़ी स्टार्ट करके जैसे ही आगे बढे, निशा अपनी सोचों में गुम हो गई तीन साल का बच्चा स्कूल के लिए कितना तैयार था।बिल्कुल खामोश गले के पीछे बैग, माँ को उसने निशा अपनी सोच में गुम हो गई तीन साल का बच्चा स्कूल के लिए बिल्कुल खामोश गले के पीछे बैग मां को उसने बाय और गाड़ी आगे आगे बढ़ गई जिसे अभी किसी सोच में गुम हुई थी कि अनेक उसकी नजर आगे चलते हुए चार बच्चों पर पड़ी एक युवाओं में पैदल चलते हुए नजर आए।
उन बच्चों में स्कूल के लिए काफी जोशो- खरोश नजर आ रहा था, भाग भाग कर पैदल ही जा रहे थे वह किसी स्कूल वैन या बस का इंतजार भी नहीं कर रहे थे कौन थे यह बच्चे। उसे गौर से देखने पर महसूस हुआ कि पीछे चल रहे दो बच्चे तो उसकी मैडसर्वेंट नीता के थे, बाकी दो बच्चे सामने काम करने वाली मैड मोहिनी के थे, उसे ख्याल आया शायद यह बच्चे कभी उसके समर कैंप में आए थे। सकी मेड नीता के बच्चे बड़े जहीन थे, यह बात कभी उसे हैरत में डाल देती, वो काम में लगी रहती स्कूल से कभी काम की जगह ही बच्चों को बुलाती, मैम से कहती बच्चों को पढ़ा दो, खुद तो कम पढ़ी लिखी थी ऊपर से काम का बोझ उसके दोनों बच्चे निधि योगेश बड़े ही समझदार थे, आगे से आगे ही अपना काम कर लेते, उसे पिछली मेड के बच्चे भी याद आए जिन्हे उसने कभी पढ़ाया था।मगर वह बच्चे पढ़ाई लिखाई में कम ध्यान देते हां उन्हें भूख दूसरे बच्चों के मुकाबले ज्यादा लगती। शायद वह खेल कूद ज्यादा करते थे,हालाकि स्कूल से उन्हें मिड-डे-मील दिया जाता था उन्हें दूसरी सहूलते भी मिली हुई थी जैसे,फीस माफी,वजीफा मिलना,किताबे मिलना स्कूल की तरफ से गरीब बच्चों की फहरिस्त में होने की वजह से यूनिफॉर्म बैग,जूते वगैरा मिलना रिशा को कई बार सोच कर बडा अजीब लगता कि आखिर समाज में किस तरह का चलन है तालीम सब के लिए तालीमी निजाम सब के लिए बराबर होना चाहिए,मगर जिन्हें हम मिडिल किलास कहते हैं उन लोगों का शायद कोई दर्द बाटने वाला नहीं होता है। वह बच्चा जिसके मां-बाप सुबह छः बजे से बच्चे के साथ लगे हुए है।बैग सेट करना मील पिलान के हिसाब से खाना देना यूनिफॉर्म टाइम टेबल से हर चीज फिर मौसम की परवाह किए बिना माओं का बस स्टॉप पर खड़े होना बच्चों को घर लाना खिलाना पिलाना सुलाना होमवर्क देखना ट्यूशन भेजना असेसमेंट करवाने में मदद करना जरूरत हो तो प्रोजेक्ट और मॉडल्स भी बनाना पीटीएम में जाना आज स्कूल में पीटीएम थी लिसा फीवर के कारण पेटीएम में नहीं जा पाए मगर बीमार होने के बावजूद उसके जेहन पर बेच रहा उसने अपनी दोस्त नीतू से पूछा यार आज पीटीएमसी क्या रहा बीमार होने के कारण जा नहीं पाई नितिन तो मानो तभी हुई थी गुस्से से बोली राह क्या क्लास टीचर के पास जाओ सुबह से ही तैयारी भागदौड़ जैसे किसी जज के सामने हाजिर लगानी हो टीचर से हम अपने बच्चे के बारे में क्या पूछे वह पहले ही ढेरों सवाल कर देती है हर पेरेंट्स लगभग वही सवाल बच्चा क्लास में पीछे है लिखाई बहुत गंदी है देर से लिखता है होमवर्क करके नहीं लाता अगर बोलिए बात नहीं सुनता इसका खेल में ध्यान है तो वह पहले से ही तैयार होती है कहने के लिए देखिए आपसे एक बच्चा नहीं समझ रहा, हमें तो एक-एक क्लास में तीस से चालीस बच्चे देखने होते हैं। मगर कभी उलट भी होता है मुझे तो पिछली पीटीएम में बड़ा मजा आया जब तरनप्रीत की मम्मा ने अपने घर की कहानी का वह खाका खींचा कि जसमीन मैम की बोलती बंद हो गई जैसे ही मैम ने तरनप्रीत को बुलाया अभी जसमीन मैम कुछ कह पाती- तरुण की मम्मी चालू हो गइर्, बोली मैम इसकी ना पूछा,े हमारा साझंा परिवार है पापा की तो पापा की यह अपने ताओ जी की भी बात नहीं सुनता, दादी को भी जवाब दे देता है कंजस से झगड़ा करता है। मैम दिवाली में अभी पंद्रह दिन हैं पर खूब पटाखे चला रहा है । शरारतों से बाज नहीं आता, होमवर्क नहीं करता मुझसे भी जुबान लड़ाता है घर का खाना पसंद नहीं करता बाजार से ला ला कर खाता है। मैम और तो और सोफे और मेज पर कूदता है । मैम की तो बोलती बंद हो गई बोली क्यूं भई। तरण प्रीत कथा सुन रही हूं। घर में शांति से रहा करो। कहना सुना करो, मैम अकसर मां-बाप को ऐसे केस में एप्टिट्यूड टेस्ट और काउंसलिंग कराने की बात स्कूल काउंसलर पर भेज देती है। मगर हर एक को पेटीएम में टाइम देना होता है। मैम तरण प्रीत की इतनी लंबी कहानी पर ज्यादा रेस्ट नहीं कर पाई, दूसरे बच्चे से बात शुरू कर दी। भाई नब्बे की स्पीड पर बात करना बच्चों का खेल नहीं है। रिशा मुस्कुरा दी। नीतू कुछ देर के लिए ठहरी बात को आगे बढ़ाते हुए बोली यार मुझे पिं्रसपल की धमकी से भी डर लगता है। फाइन रेस्टीकेट करने वाला प्लान बताकर माता-पिता को डराना, स्टेय बैक कराने की धमकी समझ नहीं आता, सुधार प्रोग्राम बच्चों के लिए होता है या मां बाप के लिए। हमारे जमाने में स्कूलिंग बहुत लंबी होती थी जहां अकेला बच्चा ही सब कुछ देखता था! मां-बाप कभी कभार मिल आए स्कूल में मगर आज मां-बाप को संग बराबर चलना होता है बच्चे के! टॉपर्स एवरेज बच्चे हर दौर में होते हैं ।मगर आज बच्चे से ज्यादा मां बाप की खबर होती है। उसके सिलेबस और आर्दर्श एक्टिवेट की। समय पता नहीं चलता पेरेंट्स में कहां गया- यह कहते हुए नीतू ने गहरी सांस ली! चंाद, सितारे मौसम, पक्षी माहौल आज ही बातें नहीं होती, बस बच्चे उनकी एक्टीविटेज पर ही चर्चा होती है। बच्चे भी ??? में यही समझते कि मां-बाप और टीचर मिलकर उन पर दबाव बना रहे हैं! हालांकि आखिर में बच्चे के लिए ही बेहतर जिंदगी का पैगाम छिपा होता है। नीतू ने निशा से कहा समझ नहीं आता दोस्त, बच्चों के लिए खुवाब देखना भी किसी ख्वावे परेशां से कम नहीं लगता, बीच में उन्हें शिवम की मम्मी की वह बात याद आ गई चिंता मत करो! बच्चे की बुद्धि के अलावा उसकी किस्मत भी होती है सही समय आने पर सब कुछ खुद बखुद सही होने लगता है रिशा का बेटा पढ़ाई में सिलो है। बस खींच रहे हैं ।बेटी रिया मेहनती है ,नीतू ने अपनी राय को आगे बढ़ाया आजकल दिमाग से ज्यादा मेहनत की जरूरत होती है। कम्परेटिव होने की जरूरत होती है।
नीतू की शिफ्टिंग के बाद रिशा ने बच्चों को कार पूल ज्वाइन करा दिया हफ्ते में वह या उसके पति एक बार ही बच्चों के साथ जा पाते वह और जगह की तब्दीली में दोनों को एक दूसरे से दूर कर दिया था वैसे भी शहरी जिंदगी में यह आम बात है कि हर कोई घड़ी की सुइयों के साथ चल रहा होता है। रूके ठहरे तो मिल गए..................... वरना वह दोनों मुस्कुरादो चार गालियां क्या छोड़ी........................बस दूरियां बन गई..................... जिंदगी का एक ऐसा तवाफ जहां सब कुछ घूम जाता है। कुछ लोग सोशल साइट पर जरूर नजर आ जाते हैं। कुछ समय गुजरने के बाद जिंदगी बस इसी असूल की हामी बन जाती है। जैसे सूखे हुए फूल किताबों में मिलें। जमाना बीत गया अर्से बाद रिशा मॉल में नीतू को देखकर उछल पड़ी, वह एक दूसरे को देख कर बहुत जज्बाती हो गई अरे कैसे हा,े बच्चे कैसे हैं ?क्या कर रहे हैं। दोनों एक दूसरे से एक साथ सवाल कर रही थी, यार मेहनत रंग लाई नीतू बिना रुके बोली बच्चों के साथ मेहनत करनी पड़ती है। मेरा बेटा, हां बोलो नीतू तुम्हारा बेटा यश बहुत शरारती था बहुत परेशान करता था तुम्हें, अरे अब क्या बड़ी क्लासों में आकर बच्चे बड़े सीरियस हो जाते हैं, कई बार? बड़ी कंपनी में मैनेजर की पोस्ट पर काम कर रहा है। बेटी हिना इंजीनियर बन गई है। उसे तो बन ही जाना था बड़ी मेहनती थी...................... अब नीतू की बारी थी................. उसने सवाल किया तुम्हारी बेटी रिया वह डॉक्टर बन गई बेटा सीए है। हां निशा तुम्हारी काम वाली का बेटा फस्र्ट आता था क्या रहा उसका........ नीता ने उसे बारहवीं से हटाकर नौकरी पर रखवा दिया था। क्यों यार............? हर बात को हम सवालों में नहीं बांध सकते सिंपल बात है गरीब है कुछ फाइनेंशियल क्राइसिस भी हो सकता है। यह बात समझ में नहीं आती पूरा खर्च सरकार का मिड -डे- मील, किताब,े बजीफे पूरा घर काम पर, पति, बच्चे ,खुद भी शायद मुझे उसएजुकेशनल सिस्टम पर भी तरस आया, एक सेक्शन के बच्चे मां-बाप की दीदारोजी कड़ा मुकाबला सख्त मेहनत से अफसर और दूसरी तरफ महनती औरे जहीन होने के बावजूद भी कलर्क औरे चैकीदार ही क्यंू बनते है। इसकी वजह क्या हो सकती है।पैसे की कमी ध्यान देने की कमी या किसी अच्छे तालीम ही निजाम की कमी नीतू ने गैर इरादतन सवाल किया? रिशा ने भी जवाब दे डाला देखो नीतू सब सही है मगर दूसरी तरफ मिडिल किलास मां-बाप अपनी सो खुवाहिशों को गला घांेटते हैं। बच्चों की दौड़ में देखने के वासते,हां यह सच्चाई है दोस्तों हर शेड्यूल बच्चों के हिसाब से चलता है। ऐसा कभी नहीं होता जब जी चाहा गांव चले गए। पिकनिक मनाने! बच्चों की फीस भरने के लिए उनकी कोचिंग के खर्चे उठाने के लिए अपना समय लगा देते हैं.............. अपनी एक -एक खुवाहिश मार लेते हैं ।बच्चों को कामयाब देखने के लिए उनके एग्जाम में अपने रिश्ते छोड़ देते हैं। समय की कमी के चलते मगर कामयाबी की तरफ मुसलसल देखते रहते हैं अपने नौनिहालों के लिए कभी खामोश नहीं बैठते, यह एक ऐसा जुनून है, एक ऐसा अंदाजे फिक्र है जो बेफिक्र अंदाज पर भारी पड़ जाता है। रिशा ने दरवाजा खटखटाया सामने से मुस्कुराते हुए उसकी डा0 बिटिया ने जैसे ही दरवाजा खोला मानो उसकी जिंदगी भर की थकान उतर गई रिशा ने मुस्कुराते हुए गले से लिपटा लिया।
हमने भी जिए वह पल [कहानी]