जब सोचा कि
तुम पर लिखूं एक कविता
तो लगा कि वह शब्द कहां से लाऊं
तुम्हारे प्यार, दुलार और परवाह को
जो तुम्हें और तुम्हारी पाक चाहत को
वर्णित कर सकें
शब्दों में बयां कैसे करूं
फिर खयाल आया कि
तुम तो स्वयं कविता की सी निर्मल हो सुलझी हुई और अलंकृत हो
प्रीत के असंख्य मोतियों सी उज्ज्वल हो
बस इतना ही सुनना
मेरी हो सिर्फ मेरी ही रहना
खूबसूरत पाक प्रेम सी
अमरबेल बन मुझ पर छाई रहना
मेरी जिंदगी की पारस हो
निशब्द हूं तुम्हारे आगे
बस इतना सा ही कहूं कि
मेरी जीने की उम्मीद हो
रात की आखिरी सोच और भोर की
पहली याद हो तुम
तुमसे ही दिन ऊर्जा और रात की चांदनी हो
तुम सुन रही हो ना
जीवन के हर मोड़ पर लड़खड़ाते हुए विश्वास का संबल बन मुझे संभाल लेना
उम्मीद हमेशा बरकरार रहे
रंग जीवन के साथ तुम्हारे चटखदार रहे।