ध्वज प्रतीक तिलक और प्रतीक चिन्ह कुंभ के अवसर पर प्रयागराज आए विभिन्न
अखाड़ों खालसा और स्वतंत्र रूप से रहने वाले साधू संतो के विभिन्न
संप्रदायों पुस्तक में समुदायों के ध्वज तिलक जैसे विविध चिन्हों के
अतिरिक्त माला कंठी खड़ाऊ कमंडल तिलक लंगोट वेशभूषा शिक्षा पद्धति व्रत
उत्सव एवं दिनचर्या विषयक अनेक प्रकार की देखने को मिली है वैष्णव
संप्रदाय की लगभग 10% प्रकार की योजनाओं की जानकारी मिलती है इन दोनों पर
सामान्यता हनुमान का चित्र अंकित है कुछ विधाओं पर शिवचंद के अतिरिक्त
शंख चक्र तिलक किस दिन में भी बने हुए दिखाई दिए किंतु सामान्य रूप से
हनुमान की तांत्रिक भुजाओं की प्रधानता पाई गई विधान के इसे कपिध्वज कहा
गया है हनुमान का चिन्ह सलमा सितारे से काला हुआ रहता है ध्वज एक रंग से
लेकर 7 रन तक के पाए गए उनको रंगो के विवरण इस प्रकार हैं नंबर 1 लाल रंग
की अग्नि वाचक प्रभाव उच्च मार्ग प्रशस्त कहा जाता है कर्मकांड के द्वारा
ब्रह्म प्राप्ति का दे रखा जाता है शुभम रजोगुण इसी एजेंट करने वाले
ब्रह्म ऋषि कहीं जाती है सफेद रंग ए बुद्धि मार्गी है प्रवृत्ति मार्गी
देवी सुधा ईश्वर आराधना साथ में * फल मोक्षा समीम पार्क पीला रंग रजोगुण
प्रधान विजय मार्गी रोग निवारक
शारीरिक संबंध मांगलिक कार्य संवर्धन फल स्वर्ग प्राप्ति कारण देवता बर्ग
नीला नीला रंग तमोगुण प्रधान मेरे मिर्ची निवृत्ती वर्धक स्वभाव गंभीर
आकर्षक आकाश उम्र तक उपासना युद्ध परिणाम विषयों का सिंगार प्राप्ति
मोक्ष की साधना समीप मोक्ष की हरा रंग क्रांतिकारी अध्यात्मिक ओजस्वी
सृष्टि संबंधित परिणाम मुक्ति के पक्ष में मानसिक सृष्टि संवर्धन योगियों
को बढ़ाता है साधु पी मोक्ष केसरिया सम्मिश्रण विशिष्टता जज्बात मायावती
अभिनेता समझती जगत समझती ब्रह्म और समष्टि माया अंश अंश का भाव इसमें है
अंश की असीम और अंश सीमित है अंशी सिंधी मृत्य अंत बिंदु बात है इसी तरह
अनंत बिंदु एक सिंधु में मिल्क केसरिया बन बन गया मोक्ष समीप का अलौकिक
दृष्टि से समाजवादी काला धन काला रंग तमोगुण बोधक ज्ञान का प्रतीक अनजान
के अज्ञान के हेतु अभी बाद है इसका हेतु मैथिली सृष्टि है मुक्तिपथ का
वादा किसलिए से नीचे रखा जाता है तिलक पंच संस्कार का आइकन से स्वामी
रामानंद की परलोक यात्रा के क्वेश्चन ओं कुछ ही दिनों बाद श्री वैष्णव
संप्रदाय दो शाखाओं में विपक्ष वक्त हो गया था एक जो तमिल भेज को
प्रधानता देता था देख ले क्या लाया और दूसरा के अंतर्गत संस्कृत भाषा
किसानों को अधिक आदर की दृष्टि से देखा जाता है बकरे के नाम से प्रसिद्ध
हुआ तड़के लेके प्रतिष्ठा पार्क 2 का 4 ई टेल मी सदी से बढ़ के लेके संभल
तक वेदांत देशिक सैद्धांतिक मतभेदों के साथ ही उनके तिलक भी दो प्रकार के
हो गए रामानंदी परंपरा में उपयुक्त दोनों प्रकार के तिलक प्रचलित हुई 13
गलती का लेला दूसरा वर्णन गर्ल बडकली वरंगल तिलक सिंहासन सहित आगे चलकर
संप्रदाय की विधि के साथ सड़कों की विभिन्न ता प्रचलित विभिन्न प्रकार
प्रचलित हो गए जिनमें 3 विशेष उल्लेख नहीं है नंबर 1 लस गली नंबर 2 बंदी
वाले और नंबर 3 चतुर्भुजी तिलक के तीन अंग माने माने जाते हैं नंबर 1
सिंहासन वह भाग जो बिल्कुल टीके संधि स्थल के नीचे और नाच का मूल पर रहता
है नंबर दो उर्दू उर्दू रेखाएं जो सिंहासन से मिली हुई मा सिक्स के दानी
तथा भाइयों बीच में थोड़ा अवकाश छोड़कर लगाई जाती है श्री बिंदु या श्री
देखा जो उनकी दोनों रेखाओं के बीच मस्तक पर धारण की जाती है
यह तीन अंग तिलंग सिंगल तिलक में तो अनिवार्य रूप से रहते हैं किंतु
वरंगल तिलक में सिंहासन ना रहने से 2 अंग रह जाते हैं विभिन्न संप्रदाय
में इनकी वर्ण बदल गए हैं उर्दू स्वीट गोपी चंदन एतबार रामराज के लगाए
जाते हैं इसी प्रकार उसके मध्य कि देखा अथवा यह का अथवा श्री रक्तदान
श्वेत गोपी चंदन अथवा पीठ रामराज्य या हरिद्रा की होती है सिंगल तिलक का
आकार अंग्रेजी के व्हाय और बरगद का यू अक्षर की भांति होता है तिलक के
उपयोग के तीनों अंगों का आध्यात्मिक महत्व उम्र में सिंहासन हनुमान जी का
प्रतीक है कारण है कि वे राम लक्ष्मण के दास ओम मंत्र दाता होने के साथ
उनके भारत भाषण भी हैं उर्दू की दौरे कहां है राम लक्ष्मण का
प्रतिनिधित्व करती हैं उनके बीच में श्री मंजू अथवा श्रीलेखा सीता जी की
उपस्थिति का चिन्ह माना जाता है इस प्रकार तिलक के अंतर्गत राम भक्ति का
पूर्ण स्वरूप आ जाता है लक्ष्मण सीता और हनुमान सहित नाम में आनंद मिश्रा
स्थापित करने के लिए ही अनेकों संत जीवन में नित्य कर्म में विशेष स्थान
दिया जाता है कुछ आचार्यों ने उनकी दार्शनिक व्याख्या भी की है उनका
महत्व उधमपुर की दौरे का है ज्ञान बैराग की पति के और उनके बीच में स्थित
बिंदु अखबार श्रीलेखा प्रशासनिक भक्ति की प्रतिनिधि है रामानुज संप्रदाय
में तिलक नासिका से 30 पर्यंत मेल कोटा मृतिका का लगाया जाता है बीच में
श्री चूना लगाया जाता है यहां दो रेखाएं श्रीहरी पाद आकृति का प्रशंसक
करती हैं के अनुसार कुछ परिवर्तन हुए हैं और इस प्रकार संख्या बढ़ती गई
है विवरण तिलक परंपरा का है यही कारण है कि अखाड़े अथवा खालसा के साथ
रहने वाले साधुओं के तिलक अलग-अलग प्रकार के पाए जाते हैं कुल 18 प्रकार
के तिलक पाए गए क मंडल कमंडल मुकुल से तीन प्रकार के पाए जाते हैं
नंबर 12 वीं के बाद ही नरियल के आकार का कमंडल नंबर 2 अजय तिवारी धातु का
कमंडल नंबर तीन विशिष्ट आदेश के बाद ही तुम भी का कमंडल ग्राम खेड़ा में
दो प्रकार की होती है खुशी वाली और दूसरी पत्ती वाली शादियों को खूंटी
वाली खड़ा हूं पहननी चाहिए स्वामी श्री 108 कुमार दास खड़ाऊं पहनने के
कारण बताते हुए कहा कि शारीरिक बनावट में पांव के अंगूठे एवं सर्दियों से
संबंधित नारियों का सीधा संपर्क सुषुम्ना नाड़ी से होकर मूसलाधार केंद्र
से होकर भील के केंद्र बिंदु से होकर लघु मस्तिष्क में मिल जाता है लघु
मस्तिष्क में पहुंचने के लिए 12 साल में पहुंचने के लिए पंच कोषों में
आवरण सेक्स पंच कमंडल है जो पंच तत्वों के अनुरूप हैं पाकिस्तान से पंछी
भूत पंच प्राण के अनुरूप बनते हैं जैसे पृथ्वी जलवायु आकाश और अग्नि
अग्नि का स्वरूप लाल पृथ्वी का केसरिया भाइयों का धूमिल और आकाश का गहरा
नीला वीर का स्वरूप स्वच्छ ऊर्जा मी का स्वरूप है किंतु क्रियाओं के आधार
पर इन के रूप में परिवर्तन होता है इस को स्थाई करने के लिए उस नालियों
से संबंधित अस्थि पंजर के संकुचन एवं विकास पर क्रिया का आधार होता है
जैसे श्रवण हिंदी को नियंत्रित करने के लिए कान में छेद कर देते हैं आदि
गांव में खड़ाऊ पहनने से संकुचन होता है जिसे एनजीओ में पड़ने वाला
प्रभाव वीर को पोस्ट बनाता है काम पर नियंत्रण रखत है बस सिक्स केंद्र
में पवित्र विचारों का जन्म होता है इससे चंचलता भी नियंत्रित होती है
माला कंट्री कंट्री है जो काट से लगी रहे कंठ से लगी रहे माला केवल पूजा
के समय ही पहनी जाती कंट्री हर समय पहनने का नियम है
निंबार्क संप्रदाय के श्री राम बाबा बालक दास का कहना है कंठी को यज्ञ
पवित्र की भांति धारण किया जाता है माला को इसलिए उतार कर रख दिया जाती
है वह एक अत्यंत पवित्र वस्तु होती है शादी के समय उस पर दृष्टि पढ़ने से
अपवित्र हो जाती करती प्रदेश की नहीं जाती वैष्णव मत वाले अर्थात बैरागी
तुलसी की माला एवं कंटी पहनते सन्यासी रुद्राक्ष की माला पहनते हैं माला
की प्रकार माला कई प्रकार की है जैसे करमाला शक्ति माला मणि माला मुक्ता
माला मूंगा माला कास्ट माला तुलसी माला आदित्य संभाला है कामना पहाड़
रखें तुलसी माला विष्णु से उत्पन्न होने के कारण वैष्णव हुए और विष्णु ही
ब्रह्म है आशा वैष्णव तुलसी माला है पहनते हैं दीक्षा दीक्षा के संबंध
में जब तक सामान्य रूप से 5 संस्कार संपन्न नहीं हो जो हो जाते तब तक
दीक्षित होना नहीं माना जाता 15 प्रकार है तिलक मुद्रा संस्कार कंडी नाम
और मंत्र दिनचर्या रामानंदी संप्रदाय के साथियों की दिनचर्या प्रातः 4:00
बजे उठना पृथ्वी माता को नमस्कार करना असर लघु शंका प्रशासन स्वच आदि से
निर्मित पी से शुरू होता स्वास्थ्य के लिए इनमें एक समान शब्द ओल्ड आए
प्रचलित है फ्री अपनी दैनिक पूजा आदि की क्रियाएं संपन्न करते हैं दातुन
जिस कास्ट में दूध होता है वह पवित्र माना जैसे गूलर रतनजोत मार्गो आदि
नागेश्वरी आराधना के अंग माना जाता है इसके लिए पूर्व संकल्प बनने की
परंपरा है पूजा करने का समय सूर्य को अर्घ देते हैं प्रातः पृथ्वी कि वह
जल्द के अंदर गिरे कपड़े से दे सकते हैं मध्यांतर में उत्तर और जल के तट
पर साइकल में पश्चिम की ओर जल्द से जल्द से सुसु के कपड़े में कपड़ों में
स्नान के बाद जल पात्र साथ जाता है सब कार्य प्रात 9:00 बजे तक हो जाते
हैं 9:00 बजे से 12:00 बजे तक कीर्तन राम नाम लेना वह आधी 12:00 बजे
पूर्व ठाकुर जी के पट बंद 3:00 बजे तक विश्राम 3:00 बजे के बाद पुनः
स्नान संध्या पूजा आदि 5:00 बजे तक रात 9:00 बजे तक बजे भगवत कथा कीर्तन
आधी रात को 10:30 बजे तक आरती की प्रार्थना राशि हो जाता है पट बंद होने
पर विश्राम दोपहर में जोनी चाटने वाले 10:30 बजे स्नान करते हैं सूरत
उत्सव रामनवमी सीता जयंती हनुमान जयंती वामन जयंती नरसिंह जयंती वेद
व्यास जयंती कृष्ण जन्माष्टमी एकादश एवं चतुर्मास चतुर्मास में एकादशी
अथवा फलाहारी आराम में चतुर्मास व्यतीत करते हैं छापे सारी दस्त द्वादश
स्थानों पर अलग-अलग नामों से देवता होते हैं उनकी पूजा होती है आज पूजा
में आता है जब तक उन्हें स्थानों को पवित्र कर के पूजा ना करें तब तक दे
पूजा का अधिकार नहीं होता मंदिर प्रवेश का अधिकार भी न होता निबंध
संप्रदाय में दाहिनी भुजा 50 अंक का छापा गोपी चंदन
लगाया जाता तिलक को हरि मंदिर माना जाता है गांव के बीच सीधी चक्र होता
उसकी पूजा उसके इसके माध्यम से होती है इस प्रकार की पूजा हेतु शरीर पर
छापे लगाए जाते हैं इससे मिलती-जुलती दिनचर्या रामानुज रामसनेही एवं
भगवान श्री स्वामीनारायण के संप्रदाय बालों की वैष्णो में श्री भगवान
स्वामीनारायण का एक नया संप्रदाय अभी 200 वर्ष पूर्व गुजरात में इसकी
उत्पत्ति हुई है पिछड़ी जाति के लोगों को संस्कारित करना इसका प्रमुख दें
इस संप्रदाय का प्रसार विदेशों में भी हो गया है 108 दानों की माला क्यों
माला 108 दानों की क्यों होती है इस संबंध में स्वामी श्री 108 श्री
राजकुमार दास महाराज ने बताया कि नक्षत्र 27 होते हैं और एक चतुर दिन
भ्रमण करते रहते हैं इसलिए 27 * 4 = 108 प्रकार ब्रह्मा प्लस प्लस प्लस
वर्णमाला मेनका तिरंबा = 23000 = 27 हावड़ा वर्सेस इश्क और मां बराबर 25
है इनका योग हुआ 108 निर्गुण उपासक ब्रह्म को मानते हैं तो उनकी माला 108
स्थानों की सीता राम सद्गुणों पास एक नाम को जपते हैं तो सीताराम दानों
का योग 54 प्लस 54 बराबर 108 इसलिए एबी 108 दानों की माला का उपयोग करती
है यदि कोई व्यक्ति मर जाता तो उसे सफेद तिलक लगाया जाता है