स्पन्दन' यानि दिल की धड़कन। वास्तव में कहानी, नाटक की रूह होती है....उसकी धड़कन होती है और शायद इसीलिये लेखनी से निकली सभी सूरतों में, कहानी दिल के सबसे करीब होती है। कहानी के मंचन में जहॉं ओर एक अभिनेता पूरी शिद्दत और गहराई के साथ स्वंय, अपनी ही रूह से रूबरू होता है। वहीं दूसरी ओर इसके मंचन में भी अलग तरह की चुनौतियां होतीं हैं। नेरेटिव फॉर्म होते हुए भी इसमें नायक या नायिका, दर्शक से सीधे इन्टीमेट रिलेशनशिप स्थापित करते महसूस किये जा सकतें हैं, जैसे उनका अपना ही कोई नज़दीकी उनके बीच में से उठ कर उनसे बात करने लगा हो। कहानी की यही कशिश, दर्शकों को न केवल अपनी तरफ खींचती है, बल्कि कि उनसे एक नज़दीकी रिश्ता भी का़यम करती है।
रंगयात्रा नाट्य समारोह-2015 की बुधवार 21 जनवरी को तीसरी संध्या में भारतीयम् नाट्य संस्था की ओर से 'स्पन्दन' शीर्षक से वरिष्ठ नाट्य निर्देशक पुनीत अस्थाना के निर्देशन में, दो कहानियों का मंचन किया गया। पहली प्रस्तुति निर्मल वर्मा की सुप्रसिद्ध एक पात्रीय कहानी 'डेढ इंच ऊपर' थी। ये एक ऐसे उम्रदराज़ योरोपीय व्यक्ति की कहानी है जो एकाकी जीवन व्यतीत कर रहा था। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान उसकी पत्नी को सत्ता विरोधी गतिविधियों के कारण गैस्टापो पुलिस ने पकड़ लिया था और पूछताछ के दौरान उसको मार दिया था। उसे पत्नी की मौत का दुख तो था ही, पर उससे भी ज्यादा आघात उसे इस बात से लगा कि उसकी पत्नी ने अपनी इन भूमिगत राजनैतिक गतिविधियों की उसे भनक तक नहीं लगने दी।
कहानी की शुरूआत एक 'पब' से होती है जहां देर रात गए एक बूढ़ा व्यक्ति एक टेबल पर बैठा अकेले बियर पी रहा है। पूरा पब अब तक खाली हो चुका होता है। तभी उसकी निगाह 'पब' के दूसरे कोने में बैठे एक नौजवान व्यक्ति पर जाती है, जो एक टेबल पर अकेले बैठा बियर पी रहा है। बूढ़ा व्यक्ति अपना अकेलापन दूर करने के लिए उस नौजवान को आग्रहपूर्वक अपनी टेबल पर ले आता है और बात करने के दौरान वह अपनी जाती ज़िन्दगी के बारे में उसे बताना शुरू करता है और इस दौरान वह गैस्टापो पुलिस द्वारा उसकी पत्नी को मारे जाने और खु़द उसे भी टार्चर किये जाने की दर्दनाक दास्तान सुनाता है। दर्द और त्रासदी के गहरे समुद्र में डूबते - उतराते अंत में वह अपनी पत्नी को याद करते हुए कहता है - 'जब तक आप अपने किसी को अपनी आंखो से मरता न देख लें ..... अपने हाथों से दफना न लें, एक धुंधली सी आशा बनी रहती है कि वह अभी जीवित है। ..... आप दरवाज़ा खोलेंगें और वह रसोईघर से भागकर तौलिये से हाथ पोंछती हुई आपके सामने आ खड़ी होगी .... केशव पंडित ने बूढ़े योरोपी व्यक्ति के दर्द और घुटन को अपने सधे अभिनय द्वारा बहुत ही प्रभावी रूप से पेश किया।
दूसरी प्रस्तुति 'सुनयना' ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता वि.व.शिरवाड़कर की सुप्रसिद्ध मराठी कहानी 'मृगनक्षत्र' पर आधारित थी। इसका मंचीय अनुकूलन पुनीत अस्थाना ने किया था। हमारी ज़िन्दगी में कई बार ऐसे लोग भी आते हैं, जो सहज ही हमारी निजी ज़िन्दगी प्रवेश कर जातें हैं और इस गहराई से जुड़ जातें हैं कि उनके बिना ज़िन्दगी अधूरी सी जान पड़ती है। पर इतना सब होते हुए भी इस 'संबंध' को कोई नाम दे पाना हमारे लिये संभव नहीं हो पाता। कुछ समय तक वो हमारी ज़िन्दगी पर पूरी तरह छाये रहतें है और फिर अचानक हवा के स्पर्श की तरह हमारे बहुत करीब से हो कर गुज़र जातें हैं और पीछे छोड़ जातें हैं, कभी अपने होने का अहसास भर ....।
कहानी का नायक 'मानस' संगीत की दुनिया का एक जाना माना नाम है। उसे पेन्टिग का भी बहुत शौक है और इसी शौक के चलते वह सुप्रसिद्ध चित्रकार डा0 मुखर्जी के सम्पर्क में आता है। एक बार डा.मुखर्जी अपने किसी काम से मानस को डाक्टर गौतम के क्लीनिक पर भेजते हैं। वहॉं उसकी मुलाकात सुनयना से बड़े ही अजीबोगरीब हालात में होती है। असल में आर्थिक तंगी की वजह से वह क्लीनिक में दवा के पैसे देने में असमर्थ होती है और कम्पाउन्डर उससे साफ-साफ कह देता है कि पहले वह पिछली उधारी चुकाये तभी उसे दवा मिल सकती है। मानस से उसकी ऐसी हालत देखी नहीं जाती और उसकी उधारी का पैसा कम्पाउन्डर को दे देता है। इसके बाद कई नाटकीय स्थितियों में बीच-बीच में सुनयना और मानस की मुलाकात होती रहती है और अनजाने ही दोनो ही एक दूसरे की तरफ आकर्षित भी होने लगते हैं।
सुनयना का निजी जीवन अत्यन्त दुःख और त्रासदी से भरा होता है। उसका शराबी पति उसे छोड़ कर किसी दूसरी अमीर विधवा के साथ घर बसा लेता है। सुनयना अपने बच्चे और बूढ़ी सास के साथ अत्यन्त दयनीय हालत में रहती है। आर्थिक तंगी के कारण न ही उसके बेटे और न ही उसकी सास का इलाज ठीक से हो पाता है और असमय ही उनकी मृत्यु हो जाती है। सुनयना की खूबसूरीती और उसके व्यक्तित्व से प्रभावित हो कर मानस उसे अपनाना चाहता है। पर सुनयना नहीं चाहती कि उसके अभिशप्त जीवन की परछांई तक मानस पर पड़े। वह मानस को कला के क्षेत्र में आकाश की बुलन्दियों को छूते देखना चाहती है। इसलिये वह अन्त में मानस को छोड़ कर किसी दूसरे आदमी के साथ रहने के लिये चली जाती है।
मानस की केन्द्रीय भूमिका में राजीव रंजन सिंह और सुनयना की भूमिका में नेहा ने अपने भावपूर्ण अभिनय द्वारा दर्शकों के दिलों को छू लिया। इन दोनो सशक्त प्रस्तुतियों में राजीव रंजन सिंह के पार्श्व-संगीत, रत्ना अस्थाना की मंच सज्जा और एम.हफीज़ की लाइटिंग का उल्लेखनीय योगदान रहा।
रंगयात्रा नाट्य समारोह-2015 की बुधवार 21 जनवरी को तीसरी संध्या में भारतीयम् नाट्य संस्था की ओर से 'स्पन्दन' शीर्षक से वरिष्ठ नाट्य निर्देशक पुनीत अस्थाना के निर्देशन में, दो कहानियों का मंचन किया गया। पहली प्रस्तुति निर्मल वर्मा की सुप्रसिद्ध एक पात्रीय कहानी 'डेढ इंच ऊपर' थी। ये एक ऐसे उम्रदराज़ योरोपीय व्यक्ति की कहानी है जो एकाकी जीवन व्यतीत कर रहा था। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान उसकी पत्नी को सत्ता विरोधी गतिविधियों के कारण गैस्टापो पुलिस ने पकड़ लिया था और पूछताछ के दौरान उसको मार दिया था। उसे पत्नी की मौत का दुख तो था ही, पर उससे भी ज्यादा आघात उसे इस बात से लगा कि उसकी पत्नी ने अपनी इन भूमिगत राजनैतिक गतिविधियों की उसे भनक तक नहीं लगने दी।
कहानी की शुरूआत एक 'पब' से होती है जहां देर रात गए एक बूढ़ा व्यक्ति एक टेबल पर बैठा अकेले बियर पी रहा है। पूरा पब अब तक खाली हो चुका होता है। तभी उसकी निगाह 'पब' के दूसरे कोने में बैठे एक नौजवान व्यक्ति पर जाती है, जो एक टेबल पर अकेले बैठा बियर पी रहा है। बूढ़ा व्यक्ति अपना अकेलापन दूर करने के लिए उस नौजवान को आग्रहपूर्वक अपनी टेबल पर ले आता है और बात करने के दौरान वह अपनी जाती ज़िन्दगी के बारे में उसे बताना शुरू करता है और इस दौरान वह गैस्टापो पुलिस द्वारा उसकी पत्नी को मारे जाने और खु़द उसे भी टार्चर किये जाने की दर्दनाक दास्तान सुनाता है। दर्द और त्रासदी के गहरे समुद्र में डूबते - उतराते अंत में वह अपनी पत्नी को याद करते हुए कहता है - 'जब तक आप अपने किसी को अपनी आंखो से मरता न देख लें ..... अपने हाथों से दफना न लें, एक धुंधली सी आशा बनी रहती है कि वह अभी जीवित है। ..... आप दरवाज़ा खोलेंगें और वह रसोईघर से भागकर तौलिये से हाथ पोंछती हुई आपके सामने आ खड़ी होगी .... केशव पंडित ने बूढ़े योरोपी व्यक्ति के दर्द और घुटन को अपने सधे अभिनय द्वारा बहुत ही प्रभावी रूप से पेश किया।
दूसरी प्रस्तुति 'सुनयना' ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता वि.व.शिरवाड़कर की सुप्रसिद्ध मराठी कहानी 'मृगनक्षत्र' पर आधारित थी। इसका मंचीय अनुकूलन पुनीत अस्थाना ने किया था। हमारी ज़िन्दगी में कई बार ऐसे लोग भी आते हैं, जो सहज ही हमारी निजी ज़िन्दगी प्रवेश कर जातें हैं और इस गहराई से जुड़ जातें हैं कि उनके बिना ज़िन्दगी अधूरी सी जान पड़ती है। पर इतना सब होते हुए भी इस 'संबंध' को कोई नाम दे पाना हमारे लिये संभव नहीं हो पाता। कुछ समय तक वो हमारी ज़िन्दगी पर पूरी तरह छाये रहतें है और फिर अचानक हवा के स्पर्श की तरह हमारे बहुत करीब से हो कर गुज़र जातें हैं और पीछे छोड़ जातें हैं, कभी अपने होने का अहसास भर ....।
कहानी का नायक 'मानस' संगीत की दुनिया का एक जाना माना नाम है। उसे पेन्टिग का भी बहुत शौक है और इसी शौक के चलते वह सुप्रसिद्ध चित्रकार डा0 मुखर्जी के सम्पर्क में आता है। एक बार डा.मुखर्जी अपने किसी काम से मानस को डाक्टर गौतम के क्लीनिक पर भेजते हैं। वहॉं उसकी मुलाकात सुनयना से बड़े ही अजीबोगरीब हालात में होती है। असल में आर्थिक तंगी की वजह से वह क्लीनिक में दवा के पैसे देने में असमर्थ होती है और कम्पाउन्डर उससे साफ-साफ कह देता है कि पहले वह पिछली उधारी चुकाये तभी उसे दवा मिल सकती है। मानस से उसकी ऐसी हालत देखी नहीं जाती और उसकी उधारी का पैसा कम्पाउन्डर को दे देता है। इसके बाद कई नाटकीय स्थितियों में बीच-बीच में सुनयना और मानस की मुलाकात होती रहती है और अनजाने ही दोनो ही एक दूसरे की तरफ आकर्षित भी होने लगते हैं।
सुनयना का निजी जीवन अत्यन्त दुःख और त्रासदी से भरा होता है। उसका शराबी पति उसे छोड़ कर किसी दूसरी अमीर विधवा के साथ घर बसा लेता है। सुनयना अपने बच्चे और बूढ़ी सास के साथ अत्यन्त दयनीय हालत में रहती है। आर्थिक तंगी के कारण न ही उसके बेटे और न ही उसकी सास का इलाज ठीक से हो पाता है और असमय ही उनकी मृत्यु हो जाती है। सुनयना की खूबसूरीती और उसके व्यक्तित्व से प्रभावित हो कर मानस उसे अपनाना चाहता है। पर सुनयना नहीं चाहती कि उसके अभिशप्त जीवन की परछांई तक मानस पर पड़े। वह मानस को कला के क्षेत्र में आकाश की बुलन्दियों को छूते देखना चाहती है। इसलिये वह अन्त में मानस को छोड़ कर किसी दूसरे आदमी के साथ रहने के लिये चली जाती है।
मानस की केन्द्रीय भूमिका में राजीव रंजन सिंह और सुनयना की भूमिका में नेहा ने अपने भावपूर्ण अभिनय द्वारा दर्शकों के दिलों को छू लिया। इन दोनो सशक्त प्रस्तुतियों में राजीव रंजन सिंह के पार्श्व-संगीत, रत्ना अस्थाना की मंच सज्जा और एम.हफीज़ की लाइटिंग का उल्लेखनीय योगदान रहा।
PUNITASTHANA
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