बस्ती है शरीफों की-जरा ध्यान में रखना
अनजान से चेहरे भी तू पहचान में रखना
ठहरे हो कभी घर कि सफर में हो कभी तुम
अश्कों को मेरी याद के-सामान में रखना
हाथों की लकीरों में कहीं प्यार लिखा है
इतना तो यकीं दोस्त तू, भगवान में रखना
चाहत में उजालों की भटकना न कहीं तू
रखना हो अगर दीप बियाबान में रखना
अनजान तेरे शहृ, तेरे रूतबे से वो
लहजे को जरा नर्म सा फरमान में रखना
साये है घने और न ही राह नजर में
अपनों को जरा अपनी निगहबान में रखना
होंठों पे अगर रख न सको एक गजल भी
अशहार मेरे प्यार के दीवान में रखना
कुछ और अदब वंंदना कुछ और सदाकत
तू वास्ते गैरों के भी सम्मान में रखना
1262/16फरीदाबाद
हरियाणा