एक उजली किरण , पी गई सारा तम
जीव की कार्यशाला निरखने लगी ।
गुंबदों से उतर ऊंची मीनार से
मेरे आँगन में आकर थिरकने लगी ।
इक हवा फागुनी ले प्रबलता बही
पीत पल्लव बजाने लगे तालियाँ ।
सब पलासी सुमन मुस्कराने लगे
खिलखिलाकर हँसी गेहूँ की
बालियाँ ।
महुआ अपनी जवानी में मदमस्त
था
गंध मादक चतुरदिक बिखरने
लगी ।
इन्द्रधनुषी रंगों से नहाई हुई
रूपसी प्रीति की इक ग़ज़ल गा रही ।
नयन सूरमा लगा यौवना बावरी
अनवरत पास मेरे चली आ रही ।
आसमाँ से तभी दूधिया चाँदनी
खोल घूंघट धरा पर उतरने लगी ।
श्रावणी नदिया जैसा उफनता बदन
कामिनी प्यार नयनों से बरसा रही ।
कामनायें प्रबल मन संजोये हुए
बस इशारों से भावों को दर्शा रही ।
सीप प्यासी खडी़ स्वाति की आस में
स्वाति की बूंद को वह तरसने लगी ।