एक और इंदु प्रभा
वह जब आठ-नो साल की थी और प्राइमरी स्कूल के दर्जा 3 में पढ़ती थी तभी उसने एक दिन अपनी मास्टरनी भाई से पूछा वह बहन जी मेरा नाम इंदु प्रभा क्यों है जबकि इंदु अर्थात चंद्रमा का अपना कोई प्रकार ही नहीं होता तो उसकी प्रभा कहां से होगी उसके इस अटपटे प्रश्न को उसकी बहन जी समझा ही नहीं पाई थी उन्होंने झल्ला कर कहा क्या क्या उटपटांग बात करती हो या अपना सबक याद कर कार उसकी जिज्ञासा शांत नहीं हुई थी उसने जिद करके फिर पूछा बताइए ना बहन जी जब चंद्रमा का अपना कोई प्रकाश नहीं होता है तो उसकी प्रभा कहां से हुई क्यों नहीं होता चंद्रमा में प्रकाश उसकी बहन जी ने कहा क्या तुम्हें रात में चंद्रमा चमकता हुआ दिखाई नहीं देता क्या तुमने कभी चांदनी नहीं देखी देखी है बहन जी इंदु इंदु प्रभा बोली पर वह चंद्रमा का अपना प्रकाश कहां है जैसा कि सूरज का होता है आपने ही तो भूगोल में पढ़ाया किचन भाषण प्रकाशित नहीं होता उसके जितने हिस्से पर सूरज की किरणें पड़ती है उतना वह चमकने लगता है पूर्णिमा के दिन सूरज और चांद के बीच में पृथ्वी नहीं होती तो सूरज की सीधी किरणे संपूर्ण चंद्रमा पर पड़ती हैं और वह अपनी सोलह कलाओं के साथ चमकने लगता है पर अमावस्या के दिन सूरज और चंद्रमा के बीच में पृथ्वी आ जाती है और चंद्र विकास हीन हुए वह जाता है सारे संसार में अंधेरा छा जाता है बहुत बातें आने लगी है तुझे उसकी बहन जी ने गुस्से से कहा ओपन अपना मन पढ़ने में लगाएगी नहीं जली सोचेगी इस घटना को घटे पूरे 20 साल बीत गए पर इंदु प्रभा को अपने प्रश्न का उत्तर नहीं मिल पा रहा था जब चंद्रमा प्रकाश नहीं होता तो उसकी प्रभा कैसी है सब छलावा है भ्रम है चंद्रप्रभा शशिप्रभा इंदु प्रभा सब गलत नाम है इसलिए कोई अर्थ नहीं इन 20 सालों में क्या कुछ नहीं घटा जब वे मेट वह मैट्रिक में थी तब उसके सिर से पिता का साया हट गया उसकी मां ने पिता की मृत्यु के बाद मिलने वाली पारिवारिक पेंशन और मोहल्ला पड़ोस की सिलाई बनाई करके किसी प्रकार इंदु प्रभा और उसकी दो छोटी बहनों और एक भाई की परवरिश की थी m.a. में इंदु प्रभा की प्रथम श्रेणी आई थी इस कारणों से शहर के ही एक कॉलेज में लेक्चरर की नौकरी मिल गई घर में वह कमाल पूछोगे और और फिर से उस घर के दिन फिरने लगे उसने हैसियत ना होते हुए भी अपने भाई को मैनेजमेंट का महंगा कोर्स करवा लिया और उसे भी शहर के ही एक व्यापारिक संस्थान में प्रशासनिक अधिकारी बनवा दिया छोटी बहनों को भी वह पूरी लगन के साथ पढ़ा रही थी और उन्हें महसूस नहीं होने देती कि उन पर पिता की छत्रछाया नहीं भाई की नौकरी लग गई उसकी शादी के प्रस्ताव कई जगह से आने लगे पर घर में बड़ी बहन के कुंवारी रहती हुए छोटे भाई की शादी के प्रस्ताव पर विचार करने वाला बालों को बहुत कठिन लग रहा था इंदु प्रभा की मानें हिंदू की शादी के लिए कई जगह बात चल कहीं और कहीं खानदान बता ना होने से बात की ना हो सकी कभी-कभी तो लगता इंदु की माही बात पक्की नहीं करना चाहती डेढ़ ₹2000 प्रतिमाह घर में समा कल आने वाली लड़की को पढ़ाई कर भेज ना होना कठिन लग रहा था उसी की आमदनी से तो घर घर चल रहा है ससुराल जाने के बाद क्या उसके ससुराल वाले उसे इस घर में पैसा भेजने देंगे यही सोच उसकी मां हर रिश्ते में कुछ ना कुछ कमी निकाल देती और बात आगे नहीं बढ़ पाती थी इंदु प्रभा पीसीएम स्वाबलंबी होने के बावजूद भी इस संबंध में प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप में कुछ कह नहीं पाती मध्यवर्गीय संस्कारों से खुशी व्यक्त करने से रोकते थे लगता उसकी अपने भविष्य के हित अनित के संबंध में निर्णय लेने का उसका कोई अधिकार नहीं है इस मामले में गांव की अनपढ़ अंधविश्वासों से गिरी लड़की और उस में क्या अंतर है उसे महसूस होने होता लड़की अपने आप में कितनी ही योग और सक्षम क्यों ना हो जाए परिवार और समाज के इशारों पर चलना ही उसकी नियति है मारी स्वतंत्र और नारी मुक्ति आंदोलन की सारी बातें अर्थ इन हो जाती है इन परिस्थितियों में एक संपन्न परिवार से भाई का रिश्ता आ जाने पर उसकी मां ने हां कर दी भाई की शादी बड़ी धूमधाम से हुई दहेज में भी अपेक्षा से अधिक धन मिला घर का सारा माहौल ही बदल गया अभी तक हिंदू की मां भाई और बहन हर बात के लिए हिंदू की निगाहें लगाए रहती थी पर अब नई बहू सब की अपेक्षाओं की केंद्र हो गई बड़े घर की किलो की लड़की थी मां बाप भी उसे बहुत चाहते थे शादी के बाद भी समय-समय पर कई किस्म के उपवास भी अपनी बेटी के ससुराल बृजवासी रहते थे इंदु प्रभा अब अपने ही घर में अपने आप को उपेक्षित ही अनुभव करने लगी अब घर के लोग उसकी वजह ही नहीं करते जो पहले होती थी घर की इस उपेक्षा ने उसे अपने कॉलेज की एक सहकर्मी विनोद के निकट ला दिया विनोद दूसरी जाति का था बढ़ाइए होनार सुसंस्कृत निम्न मध्यवर्गीय परिवार के आने के कारण उसे जरूर से अधिक संकोच था हिंदू और विनोद किए निकटता धीरे-धीरे कॉलेज में चर्चा का विषय बन गई कई प्रकार की मनगढ़ंत घटनाएं नमक मिर्च लगाकर उसके संबंध में ना केवल स्टाफ विवरण कॉलेज की छात्र छात्राओं पहने लगी यह बातें जब हिंदू की मां को पता चले तो लगभग बौखला उठी क्या परिवार की इज्जत चौराहे पर नीलाम करने की ठान ली है एक दिन उसने हिंदू से कहा मैं नहीं मां ऐसा कुछ नहीं है हिंदू सैयद की सैयद ही रहे हम एक अच्छे मित्रों के अलावा और कुछ नहीं पर यह बातें होटल में दोपहर में बिताना घंटों पार्क में घूमते रहना बिना बजे कॉलेज से छुट्टी लेकर आ गया जगह जाना यह सब क्या है मां ने पूछा सब झूठे मां सभी मतलब है इंदू की बीच की जुटी आखिर में लोगों की मौत व ताला तो लगा नहीं सकती सब मेरे बाद में अपने मन की कुंठा ही निकाल ले क्या मुझ पर तुम्हारा विश्वास हिंदू बात पूरी ही नहीं कर पाई कि उसकी मां ने उसकी मां पर एक जोरदार थप्पड़ मारती हुई एक फोटो उसके सामने रखते हुए का ऐसा क्या है उस फोटो में होटल के कमरे में हिंदुओं विनोद की आपत्तिजनक स्थिति की तस्वीर थी एक क्षण तो हिंदू भी उस छाया चित्र को देखकर सन्न लगे ऐसा भी हो सकता है और मन ही मन बनवाई और करी हुई बारिश से उस तस्वीर को देखने लगी में पूरे सहयोग कविता से गायब ट्रिक फोटोग्राफी ऐसा कुछ नहीं कॉलेज की हमारे स्टाफ ग्रुप से हम दोनों के चेहरे निकाल कर इस प्रकार की फोटोग्राफी में एडजस्ट किए ना सब समझती हूं जवानी कभी मुझ पर भी आई थी संबंधों की मर्यादा तोड़ने का उड़ते हुए कहा हिंदू भी संयम खो चुकी थी बोली हां यह तो यह है नहीं अगर है इसमें बुरा क्या है विनोद से शादी करना चाहती हिंदू के संकल्प की बात जब उसके कॉलेज की कार्यकारिणी समिति में पहुंची एकदम कोहराम मच गया कार्यकारिणी के एक बूढ़े सदस्य का हमारी संस्था भारतीय संस्कृति का प्रचार-प्रसार करने वाली है इस प्रकार अगर इस प्रकार की अंतर जाति विवाह और सब चेतन शुभ चंदन का त्योहार हमारी शिक्षक सताए ही देने लगी तो छात्राओं पर क्या असर पड़ेगा आरा कॉलेज तो आदिवासियों का फूल बन जाएगा जहां लड़की लड़कियां शिक्षा ग्रहण करने नहीं मौज मस्ती करने आएंगे फिर कौन भला आदमी हमारे कॉलेज में अपनी नई पीढ़ी को भेजेगा नहीं नहीं ऐसा नहीं होता होगा एक दूसरे सदस्य ने कहा अगर और हिंदू और विनोद को यही सब करना है तो हमारे कॉलेज से अलग हो जाएं फिर मौज मस्ती करें हिंदी में भी जब अपना अपना विरोध के सामने देखा तो उसका मध्यमवर्गीय पूर्व संस्कार बोल रहा मुझे पर बूढ़ी मां और दो जवानों का बहार है कॉलेज से निकाले जाने पर मैं क्या करूंगा कैसे घर की परवरिश होगी यह दूसरी ही संस्कृति में हमें जीना पड़ेगा मुझे भी अपनी बहनों ओशो चंद छोड़ना पड़ेगा कैसे संभव हुआ हिंदू को लगा कहीं पर भी उसका ना कुछ नहीं है सब दूसरों का दिया हुआ है ठीक चंद्रमा के समान समाज भी सूरज उसे जितना चमक आना चाहेगा वह उतनी ही चमकेगी नहीं तो चारों तरफ अंधेरा ही उसकी नियति है 20 साल बाद उसे लगा कि उसके नाम की सार्थकता हिंदू परिवार जैसे चंद्रमा की परवाह उसकी अपनी नहीं सूरज की है उसी प्रकार उसकी अपनी प्रभावी अपनी नहीं समाज की है उसे अलग होना उसके बस के बाहर नहीं