मच्छर साहिब होत हैं, बन्दे ते कुछ नाहीं।
मच्छर जब ते बार करे, डेगू जकड़े माहीं।।
भाई जान, आपकी कसम शेर जो मैंने पढ़ा हैं उसका अर्थ मुझे नहीं मालूम! फूल और कांटो में से कुछ चुनने को मिले तो हम भी लपक कर फूल ही चुनते। साहित्य के भण्डार से मैंने यह शेर महफूज ढंग से चुना तो गजब हो गया, मेरी कालोनी में तूफान खड़ा हो गया। अचानक इतनी हलचल मच गई जैसे नई सरकार के गठन में एकाध विधायक कम रहने पर मचती हैं।
सवेरे-सवेरे मेरे पड़ोसी रामलाल जी आकर बोले-भईया, आपको तो यह कालोनी छोड़कर जाना होगा? मैने निवेदन किया कि इस एम0आई0जी0 फ्लेट के पूरे पैसे नक्की कर चुका हूँ। आप मुझे बिना आधार के यहां से नहीं निकाल सकते हो? रामलालजी ने फौरन अपने जेब से एक डिब्बा निकाला और कुछ दबाया कि आवाज मेरी ही निकली-मच्छर साहिब होत हैं......!
समझ गये जनाब, आपने सुनियोजित तरीके से मच्छर महाराज को उसकी शक्ति से ज्ञान करा दिया, बिना कालोनी वालों की सलाह किये निमन्त्रण दिया है! मलेरिया से तो हम बचने के लिये कुनेन खा कर काम चला लेते थे अब डेगू से डर रहे हैं। आपके कारण हजारों लाखों की संख्या में मच्छर-मच्छरियों के झुन्ड के झुन्ड आकर हमला करेंगे। हमारे शरीर से कई लीटर खून अपनी आरीनुमा तेज धार वाली सूंड़ से कुरेद कर पी लेंगे। हम स्वतन्त्र भारत के नागरिक है संविधान के तहत किसी तेज धार के औजार से खून करना या खून पीने को प्रेरित करने पर हम आप भारतीय दण्ड संहिता की धारा 506, 452, 448, 337, 307, 224 के तहत कानूनी कार्यवाही करेगें। आपने शहर की अन्य कालोनियों के निवासियों से दस-दस हजार रूपये लेकर यह बचाव आरती जो हमने अधूंरी ही सुनकर लिख ली हैं-
ओम जय मच्छर देवा, स्वामी जय मच्छर देवा।
मच्छर जी की आरत जो कोई नर गावे,
उसको मलेरिया, डेगू बुखार कभऊ नहीं आवे।।
खूब बाटी हैं। कालौनी में किसी को कानो कान खबर तक नहीं, वो तो मेरे पुराने परचित रामलोटन ने मुझे बता दिया। बोलो अब क्या कहत हो?
मैं रामलाल के बचन सुनकर कुछ देर के लिए परेशान हो गया फिर मुझे ख्याल आया जब से लक्ष्मणपुरी की गद्दी पर बैठाने वाला कमल मुरझाया है और साईकिल पंचर हुई है माया जाल ना, ना, मायाजेल से इन्द्रप्रस्त के सिंहासन पर आरुढ़ होने के लिऐ हिलोरे ले रही है तभी से पड़ोसी देशों ने गुप्त तरीको से जेविक युद्ध छेड़ने का षडयंत्र रचा है हो न हो रामलाल इन्हीं में से किसी देश का भेदिया हो जो अपने बचाव के लिए मेरा नाम घसीट कर सारा दोष मेरे मथ्थे मड़ना चाहता है। ताकि यदि दिल्ली की पुलिस या 'रा' को संदेह हुआ तो अपने बचाव के लिये सारी कालोनी के लोगों को साथ लेकर मामला सुलटा कर मुझे हवालात की हवा खिला दे। मैंने अपने तेवर तुरन्त बदले, ऊपर से नीचे तक रामलाल का मुआयना किया और लपक कर उनका हाथ पकड़ लिया। ''मियां, मुझे धोका देते शर्म नहीं आती? जिसे तुम रिकार्ड प्लेयर बता रहे हो वह ट्रासमीटर हैं! कितने रूपये मिलते हैं तुम्हे आई.एस.आई. से? जल्दी बताओं नही तो खेर नहीं। सावधान हो जाइए-कहीं आप पर अब पछताये क्या होत है, जब चिड़िया चुग गई खेत'' चरितार्थ न हो जाए। गिरफ्तार होगे, पेशी करते-करते परेशान हो जाओगे, क्या समझ रखा है अपने आप को? मुझे झांसा देने चले थे।
मेरा रोब देखकर रामलाल की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई, कुछ देर तक थर-थर कापते रहे..........। बोले मियां, मैं तो मजाक कर दिया था। इन्द्रप्रस्त में जबसे बात कौन कह सकता मेरा दिमाग ही खराब हो गया है। क्या पता कौन कहे खेत में आलू वो दो तो दूसरा कहेे अरे आलू किससे पूछ कर लगाये मैं तो गेंहू बोने के लिए यूरिया लाया हूॅ झट से हल चलाकर गेंहू वो दो। इतने में तीसरा कहे नहीं भाई मे तो धान (चावल) पसन्द करता हूँ अब मच्छर महाराज की लाल सलाम हुआ है नगर निगम कहता मेरे पास डी.डी.टी. नहीं है तो मलेरिया विभाग कहता मैने मगा तो ली है लेकिन दुनिया के वैज्ञानिक कह रहे कि यदि छिड़काव किया तो हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकार होती हैं, हम दे नहीं सकते। धुंआ की मशीन महापौर के यहां रखी है। मच्छर जी रोज हमारा ताजा खून पीकर ''हैप्पी बर्थ डे टू यू....... मना रहे है। 236 अब तक मच्छरीस्तान के शिकार हो चुके हैं। चुनांचे, खुदा को हाजिर नाजिर मानकर केरिया हूँ जब से ''डेगू है डेबिट-क्रेडिट सब बराबर हो गये है। मुलायम हाथ मलते रह गये, मायावती मजे कर रही है। लेकिन बेचारे कल्याण गाहे बगाहे खाकी नेकर दो बार प्रेस करा चुके लेकिन कांग्रेस ने यह सी चाल चली कर कि माया मिली न राम, मुफ्त हुये बदनाम। छह करेगी। सच केरिया हूँ रामलाल जी विनय मुद्रा में मेंरे सामने कहने लगे। ''मच्छर 07 दीवाना'' केसेट गांव, गली में चेतावनी के लिये बजेगे। आप को नाम और शौहरत मिलेगी। इस शेर के कारण मैं तो भूलरिया था घर से चला था आपको बधाई देने इस नई रचना के लिये, झुमरी तलैया से भोपाल के ताल तक दिग्विजय अभियान का श्री गणेश के लिए सरकार से माँग करूगा, आपके पक्ष में जोरदार अभियान चलाऊगा लेकिन तुम मुझे सी.आई.ऐ. से नहीं जोड़ो, मेरे भी बच्चे हैं
मैने 'जम्हाई' ली और कल्पना में मशगूल हो गया कि यदि मुझे मच्छर भी मांसा, मच्छर पुराण, मच्छरो का सौदर्य शास्त्र आदि लिखने का अवसर मिला तो मेरे दोनों हाथों में बैंक पाॅलिसी रहेगी। नोवेल तो मिलेगा ही क्यों कि सर्वप्रथम मैने ही कल्पना का जा सच हो गया। 'डेगू' की जाँच कमेटी, अनुसंधान संस्थान आदि में शामिल होकर मुफ्त में माल हजम करूगा। रिर्पोट आयेगी.....भी नहीं मुझे क्या?
सत्तधारी प्राणी जो भी चाहे करे आखिर समाज ने अधिकार दिया। चाहे सबला बने समाज या अबला गुप्त जी ठीक कहते हैं।
सत्ता ही समाज की है, वह जो करे, करे।
एक अबला का क्या, जिये, जिये मरे,मरे।।
व्यंग्यः- मच्छर के बहाने नोबेल तक